इस बार करवा चौथ पर बन रहा है खास संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
![](https://janaagaj.in/wp-content/uploads/2021/10/1635042225769.jpg)
![](https://janaagaj.in/wp-content/uploads/2021/10/1635042225769-1.jpg)
अखंड सौभाग्य का व्रत करवा चौथ व्रत इस साल करवा 24 अक्टूबर, रविवार को है। यह व्रत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है, इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जल का व्रत रखती है और रात को चांद निकलने के बाद विधिवत पूजा-अर्चना के आद अपना व्रत खोलती हैं।
इस साल करवा चौथ पर शुभ संयोग बनने से इसका महत्व और बढ़ गया करवाचौथ पर्व पर इस बाद पांच साल बाद खास योग बन रहा है। करवाचौथ पर रोहिणी नक्षत्र और रविवार का संयोग बन रहा है। इस खास संयोग में भगवान श्रीगणेश के साथ ही सूर्यदेव की भी विशेष कृपा रहेगी। व्रत रखने से गणेश भगवान के साथ ही सूर्यदेव का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि करवाचौथ का व्रत निर्जल किया जाता है।
व्रत में चांद के उदय होने पर भगवान गणेश, कार्तिकेय, माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करके चंद्र को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त किया जाता है। चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की जन्मतिथि मानी जाती है, इसलिए इस दिन महिलाओं के साथ ही कोई भी व्यक्ति उपवास रख सकता है। व्रत के रखने से जहां विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा करती हैं, वहीं कुंवारी युवतियां इस व्रत को रखकर विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करती हैं।करवा चौथ पूजन के लिए चांद रोहिणी नक्षत्र में निकलेगा और महिलाएं चंद्रदर्शन कर अपना व्रत खोलेंगी।
पूजा का शुभ समय
चतुर्थी तिथ 24 अक्टूबर 2021 को सुबह 03:01 बजे शुरू होगी और 25 अक्टूबर को सुबह 05:43 मिनट पर समाप्त होगी. करवा चौथ की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 06:55 से 08:51 बजे तक है, वहीं चंद्रोदय रात 08:11 पर होगा!
पूजा विधि
इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर नहा-धोकर सास द्वारा दी गई सरगी खाती हैं। इसके बाद पूरा दिन निर्जला और निराहार रहना होता है। शाम को महिलाएं सोलह शृंगार करके शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं। करवा चौथ के दिन सुहागिनों को लाल, गुलाबी, पीला,हरा और महरून रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। पहली बार करवा चौथ व्रत रखने वाली स्त्रियों को लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की मूर्तियों की स्थापना करें। यदि मूर्ति ना हो तो सुपारी पर धागा बांध कर उसकी पूजा की जाती है। इसके बाद अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए देवी देवताओं का स्मरण करें और करवे सहित बायने (खाने) पर जल, चावल और गुड़ चढ़ाएं।