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क्या पुलिस को चालान और चेकिंग करने का अधिकार है ! यह जानकारी आपके लिए जरूरी

देहरादून

सोशल मीडिया पर एक पोस्ट जमकर वायरल हो रही है जिसमें बताया जा रहा है कि पुलिस ना तो आपका चालान कर सकती है और ना ही पुलिस को आपके कागज चेक करने का अधिकार है।

जिसके बाद भ्रामक स्थिति फैलने के चलते पुलिस के द्वारा जानकारी देते हुए बताया गया कि पुलिस को यह अधिकार है,

उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड राज्य उत्तर प्रदेश राज्य से अलग होकर वर्ष 2000 में अस्तित्व में आया। राज्य गठन के पश्चात भी कतिपय नियम, अधिनियम, विनियम उ0प्र0 राज्य के ही क्रियान्वयन हो रहे है। उ.प्र. राज्य में वर्ष 1997 से पूर्व मोटरयान अधिनियम के मामलो अन्वेषण या न्यायालय के चालान का अधिकार उपनिरीक्षक एवं उससे उच्चतम पंक्ति तक के पुलिस अधिकारियों को ही प्राप्त था, 1997 में उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना संख्या 7760(2)6-पु0-1-97-27/97 दिनांक 15 सितम्बर, 1997 के द्वारा मुख्य आरक्षी प्रो0 को भी मोटरयान अधिनियम 1988 के अन्तर्गत अन्वेषण अर्थात न्यायालय के चालान करने का अधिकार प्रदान किया गया।
मोटरयान अधिनियम के अन्तर्गत उल्लंघन अपराध की श्रेणी में आते है। पुलिस द्वारा अधिनियम के अन्तर्गत किये गये अपराधों पर संज्ञान लेते हुये चालान बतौर आरोप पत्र न्यायालय में अग्रेषित किया जाता है।

. उ0प्र0 शासन की अधिसूचना संख्या 5609(1)छः-पु0-2-94 दिनांक 5 जनवरी, 1995 के द्वारा पुलिस विभाग में नागरिक/यातायात पुलिस में नियुक्त राजपत्रित पुलिस अधिकारियों को मोटरयान अधिनियम के धारा 181, 4/181,180,6(2) 182, 39/192, 47/177, 112/183, 179,184, 177,179(1) में प्रशमन अर्थात मौके पर नगद धनराशि वसूलने का अधिकार प्राप्त दिया गया जो उत्तराखंड राज्य बनने के 3 वर्ष तक 2004 तक यथावत बना रहा।

उ0प्र0 शासन की अधिसूचना संख्या 5609(1)छः- पु0-2-94 दिनांक 5 जनवरी, 1995 को अतिक्रमित करते हुये उत्तराखण्ड शासन द्वारा अधिसूचना संख्या 688/IX/435/2004 दिनांक 20 दिसम्बर, 2004 के द्वारा नागरिक /यातायात पुलिस में उपनिरीक्षक एवं उससे उच्च पंक्ति के पुलिस अधिकारियों को मोटरयान अधिनियम की धारा 177, 177/129, 179(1), 179(2),183(2), 184, 186,138(3) CMVR में प्रशमन (नगद धनराशि वसूलना) का अधिकार प्रदान किया गया ।

 

अधिसूचना संख्या 688/IX/435/2004 दिनांक 20 दिसम्बर, 2004 को अधिसूचना संख्या 614/IX-1/812015/2016 दिनांक 9 अगस्त, 2016 के द्वारा अतिक्रमित करते हुये नागरिक/यातायात पुलिस में नियुक्त उपनिरीक्षक एवं उससे उससे उच्च पंक्ति के पुलिस अधिकारी को धारा 177,177/129, 179(1), 179(2), 184, 186 एवं 130(3) C.M.V.R में प्रशमन(चालान कर नगद धनराशि वसूलना) करने हेतु अधिकृत करते हुये प्रशमन शुल्क की धनराशि में वृद्वि की गयी।
अधिसूचना संख्या 614/IX-1/812015/2016 दिनांक 9 अगस्त, 2016 को अधिसूचना संख्या 418 दिनांक 24 सितम्बर, 2019 द्वारा अतिक्रमित करते हुये प्रशमन शुल्क दरों में वृद्वि करते हुये पुनः पुलिस विभाग में नागरिक/यातायात पुलिस में नियुक्त उपनिरीक्षक एवं उससे उच्च पंक्ति के पुलिस अधिकारियों को मोटरयान अधिनियम की उन्ही धाराओं में प्रशमन शुल्क वसूलने हेतु अधिकृत किया गया है जिन धाराओं/मामलों में 2016 की अधिसूचना के द्वारा प्राधिकृत किया गया था।
यहां पर स्पष्ट किया जाता है कि हे.का.प्रो., उप निरीक्षक एवं उससे उच्च श्रेणी के अधिकारियों को मोटरयान अधिनियम के उल्लंघन के मामलों में अन्वेषण अथवा चालान करने का अधिकार राज्य गठन से पूर्व से ही प्राप्त है जबकि उपनिरीक्षक एवं उससे उच्च पुलिस अधिकारियों को प्रशमन( नगद चालान) का अधिकार उत्तराखंड शासन द्वारा वर्ष 2004 मे प्रदान किया गया है जबकि कागजात चेक करने का अधिकार स्वयं मोटर यान अधिनियम 1988 देता है मोटर यान अधिनियम की धारा 130, 202,205,206,207 का अवलोकन किया जा सकता है।

जहां तक धारा 207 मोटरयान अधिनियम के तहत वाहनों को पुलिस द्वारा सीज करने के बारे में प्रश्न उठाये जा रहे है उसके सम्बन्ध में अवगत कराना है कि पुलिस अधिकारियों को धारा 207 मोटरयान अधिनियम में ही कार्यवाही करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त शासनादेश संख्या 02/2002-परिवहन/2002 दिनांक 03 जनवरी, 2003 में भी स्पष्ट रुप से उल्लेख किया गया है कि पुलिस अधिकारी मोटरयान अधिनियम की धारा 207 के अन्तर्गत कार्यवाही हेतु शासनादेश जारी होने से पूर्व से ही अधिकृत है।

. बार एशोसिएशन देहरादून द्वारा दायर याचिका 2512/2011 में माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा जारी निर्देश में पुलिस को धारा 3, 4, 39 एवं 66 के उल्लंघन पर 207 मोटरयान अधिनियम में वाहन को सीज करने की कार्यवाही हेतु प्राधिकृत किया है।

मुख्तार मोहसिन, निदेशक यातायात, उत्तराखण्ड द्वारा बताया गया कि यदि भविष्य में कोई भी इस प्रकार की भ्रामक सूचना फैलायेगा या दुष्प्रचार करेगा तो उसके खिलाफ उत्तराखण्ड पुलिस अधिनियम एवं अन्य सुंसगत धाराओं के अन्तर्गत वैधानिक कार्यवाही की जायेगी।

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