
देहरादून: आज उत्तराखंड अपना प्रमुख लोक पर्व घी संक्रांति मना रहा है। घी संक्रांति, घी त्यार ,ओलगिया या घ्यू त्यार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की सिंह संक्रांति के दिन मनाया जाता है। भगवान सूर्यदेव जिस तिथि को अपनी राशी परिवर्तन करते है। उस तिथि को संक्रांति कहा जाता है और उत्सव मनाए जाते हैं।
उत्तराखंड के सभी लोक पर्वो की तरह घी संक्रांति भी प्रकृति एवं स्वास्थ को समर्पित त्यौहार है। पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना करते हैं। अच्छे स्वास्थ के लिए,घी एवं पारम्परिक पकवान खाये जाते हैं।
उत्तराखंड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है। कहते हैं, जो इस दिन घी नही खाता उसे अगले जन्म में घोंघा( गनेल) बनना पड़ता है। घी त्यार के दिन खाने के साथ घी का सेवन जरूर किया जाता है, और घी से बने पकवान बनाये जाते हैं। इस दिन सबके सिर में घी रखते हैं। बुजुर्ग लोग जी राये जागी राये के आशीर्वाद के साथ छोटे बच्चों के सिर में घी रखते हैं और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में घी, घुटनो और कोहनी में लगाया जाता है।
घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है। कहा जाता है, जो इस दिन घ्यू (घी ) का सेवन करते हैं,उनके जीवन मे राहु केतु का अशुभ प्रभाव नही पड़ता है।
घी संक्रांति या घी त्यार के दिन दूध दही, फल सब्जियों के उपहार एक दूसरे को बाटे जाते हैं। इस दिन अरबी के पत्तों का मुख्यतः प्रयोग किया जाता है। सर्वोत्तम अरबी के पत्ते और मौसमी फल सब्जियां और फल अपने कुल देवताओं को चढ़ाई जाती है। उसके बाद गाँव के प्रतिष्ठित लोगो के पास ( पधान जी ) उपहार लेकर जाते हैं, फिर रिश्तेदारों को दिया जाता है।
इस दिन उत्तराखंड के पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं। घी संक्रांति के दिन पूरी , बड़े अरबी के पत्तों की सब्जी ,खीर पुए आदि बनाये जाते हैं। इस दिन उत्तराखंड का एक विशेष पकवान बनाया जाता है, जिसे बेड़ू रोटी कहा जाता है। बेड़ू रोटी को आटे में उड़द की दाल पीस कर डाली जाती है। इस समय पहाड़ी खीरा काफी मात्रा में होते हैं, इसलिए इस त्यौहार पर पहाड़ी खीरे का रायता भी जरूर बनाया जाता है।
घी संक्रान्ति के दिन , बड़े बुजुर्ग अपने से छोटो के सिर में और नवजात बच्चों के तलवो में घी लगाते हुए आशीष वचन जी राये जागी राये बोल कर अपना आशीर्वाद देते हैं। घी संक्रांति की शुभकामनाएं देते हैं।
जी रये जागी रये,
यो दिन यो बार भेंटने रये.
दुब जस फैल जाए,
बेरी जस फली जाईये.
हिमाल में ह्युं छन तक,
गंगा ज्यूँ में पाणी छन तक,
यो दिन और यो मास
भेंटने रये..