चमोली जोशीमठ
ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जोशीमठ में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ को अन्यत्र शिफ्ट किया जा सकता है।
भूधंसाव के कारण ज्योतिर्मठ की दीवारों में दरारें आई हैं, जो हाल के दिनों में चौड़ी हुई हैं। जोशीमठ में भूधंसाव के कारणों की जांच में जुटे विज्ञानियों के साथ ही शासन-प्रशासन मठ की निरंतर मानीटरिंग कर रहे हैं।
तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों की सहमति से निर्णय लिया जाएगा
सचिव आपदा प्रबंधन डा रंजीत कुमार सिन्हा के अनुसार यदि मठ को अन्यत्र शिफ्ट करने की स्थिति आई तो तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों की सहमति से ही कोई निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि मठ परिसर में स्थित मंदिर अभी पूरी तरह से सुरक्षित है।
देश के चारधामों में से एक बदरीनाथ का मुख्य पड़ाव जोशीमठ शहर भूधंसाव और भवनों में दरारें पडृने के कारण कराह रहा है। शहर के सुनील वार्ड से लेकर एटीनाला व अलकनंदा नदी के तट तक के क्षेत्र को आपदाग्रस्त घोषित किया गया है।
इसी क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्मठ की दीवारों में भूधंसाव के कारण दरारें आई हैं। सचिव आपदा प्रबंधन डा सिन्हा ने माना कि ज्योतिर्मठ की दीवारों में दरारों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि मठ की निरंतर मानीटरिंग की जा रही है।
महत्वपूर्ण है ज्योतिर्मठ
ऐतिहासिक तौर पर ज्योतिर्मठ उस कालखंड में वैदिक शिक्षा एवं ज्ञान का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
इसकी स्थापना वैदिक मत के अनुसार 507 से 475 ईसा पूर्व के बीच स्वयं आदि शंकराचार्य ने की थी। कुछ जानकर का अर्वाचीन मत है वह इसे आठवी सदी का बताते है
इसके बाद ही उन्होंने चिकमंगलूर (कर्नाटक) में शृंगेरी मठ, जगन्नाथपुरी (ओडिशा) में गोवर्धन मठ और द्वारका (गुजरात) में शारदा मठ की स्थापना की थी।
प्रथम मठ ज्योतिर्मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है।
इस मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’ विशेषण लगता है।
मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है।
ज्योतिर्मठ के पहले शंकराचार्य आचार्य तोटकाचार्य थे।
मूल मठ पहाड़ी के ऊपर है।
यहीं कल्पवृक्ष के एक ओर ज्योतेश्वर महादेव मंदिर है।
कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद आदि शंकराचार्य ने यहां एक प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की थी।
यहां के गर्भगृह में पीढिय़ों से एक दीया प्रज्ज्वलित है।