
देहरादून
बंदरों की आबादी रोकने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने दिया यह सुझाव।
उत्तराखंड में बंदरों के आतंक की समस्या बढ़ती ही जा रही है पहाड़ हो या मैदान बंदरों के आतंक से हर कोई परेशान है धार्मिक स्थल हो या गांव के खेत बंदरों के द्वारा हर जगह अपना आतंक फैलाया जा रहा है
वहीं भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है कि बंदरों की आबादी को रोकने के लिए 70 फ़ीसदी बंदरों की नसबंदी करनी ही होगी राज्य में और ज्यादा स्टेरेलाइजेशन सेंट्रल खोलने होंगे
मौजूदा समय में उत्तराखंड का ऐसा कोई जनपद नहीं है जहां बंदरों का आतंक नहीं हो सभी मंदिरों और पर्यटक स्थलों में बंदर अपना उत्पात मचाए हुए हैं
वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने सरकार को सुझाव दिए हैं कि बंदरों की समस्या का सबसे सटीक और असरदार उपाय उनका बंध्याकरण है लेकिन इसको भी व्यापक स्तर पर करना होगा 10 से 20% बंध्याकरण से काम नहीं चलेगा कम से कम 60 से 70 फ़ीसदी बंध्याकरण करना होगा तब जाकर कुछ सालों में बंदरों के आतंक से प्रदेश को निजात मिल सकेगी बंदरों की समस्या से निपटने के लिए भारतीय वन जीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस सत्य कुमार ने यह सुझाव दिया है डॉक्टर सत्य कुमार के अनुसार हिमाचल में भी बंध्याकरण के जरिए बंदरों की समस्या पर काबू पाया गया है यह एक प्रभावी उपाय है लेकिन इसके लिए वन विभाग को एक तो व्यस्क बंदरों और जल्द व्यस्त होने वाले 70% बंदरों की नसबंदी करनी होगी कम बंदरों की नसबंदी से इनकी संख्या कम नहीं होगी जितनी कम की नसबंदी होगी उससे ज्यादा हर साल उनके बच्चे होते जाएंगे नसबंदी में सबसे ज्यादा दिक्कत बंध्याकरण सेंटर कम होने से आती है हिमाचल में वर्तमान में 13 सेंटर चल रहे हैं जबकि उत्तराखंड में सिर्फ दो ही सेंटर है।
वहीं वन एवं पर्यावरण मंत्री उत्तराखंड सुबोध उनियाल ने बातचीत में कहा कि प्रदेश में इस वक्त बंदरों की संख्या काफी ज्यादा है जिनमें से करीब 8 से 10000 का बंध्याकरण हो गया है लगातार बंध्याकरण की प्रक्रिया चल रही है अभी हल्द्वानी और हरिद्वार में दो सेंटर है कुछ और सेंटर बढ़ाने के लिए विचार चल रहा है ताकि बंध्याकरण और तेजी से हो सके