देहरादून: प्रदेश में अब अपनी निजी भूमि पर खड़े पेड़ों को काटने के लिए कुछ प्रजातियों को छोड़कर लोगों को अब वन विभाग की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी, इसके लिए राज्य सरकार वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 में संशोधन (Amendment in Uttarakhand Tree Protection Act 1976) करने जा रही है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि लोग अपनी जमीन पर पेड़ लगाते हैं, और उन्हें काटने के लिए वन विभाग के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसे में लोगों को अपनी भूमि पर पेड़ लगाने को लेकर रुचि कम हो रही है।
वन मंत्री ने कहा कि आम लोगों के लिए नियम आसान होंगे और इसके साथ ही अवैध तरीके से पेड़ काटने वालों पर सख्ती का प्रावधान भी किया जाएगा।उन्होंने कहा राज्य में सूख रही नदियों को पौधरोपण के माध्यम से कैसे पुनर्जीवित किया जाए इस पर मंथन किया जा रहा है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इस संबंध में प्रमुख वन संरक्षण की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने के निर्देश दिए हैं, यह कमेटी 02 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी।
राज्य में उत्तर प्रदेश के जमाने से वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 लागू है (Uttarakhand Tree Protection Act 1976) उत्तराखंड बनने के बाद अभी तक इसमें कोई संशोधन नहीं किया गया। हालांकि पेड़ों के 28 प्रजातियों को इससे बाहर रखा गया है- अगस्त, कैजूरीना, जंगल जलेबी, अरु, बास, पॉपुलर, फराद, बबूल, बकेन, विलायती बबूल, यूकेलिप्टस, सीरिस, रोबनिया, कवाटेल, बिली, सुबबुल, अयार, कठबेर, खटीक, जामुन या जमोला, ढाक या पलास, पेपर मलबरी, भीमल या बकुला, मेहल, सेजना और शहतूत शामिल हैं।
“वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कानून संशोधन का फैसला लिया गया है, ताकि लोगों को अपने ही खेतों में लगाए पेड़ काटने के लिए वन विभाग से परमिशन ना लेनी पड़े, हालांकि इसमें बांज, देवदार, साल, खैर, सागौन, सहित कई प्रजातियों के लिए बाध्यता जारी रहेगी। इससे लोग पेड़ लगाने को प्रोत्साहित होंगे” – सुबोध उनियाल, वन मंत्री