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जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है संन्यास: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती

श्रीकाशी / नई दिल्ली . मनुष्य का शरीर प्राप्त होने पर भी, भगवदर्पण बुद्धि विकसित होने के बाद भी यदि हम योगीजनों के मार्ग (सन्यास-मार्ग) का अवलम्ब ना लें तो शायद ये इस दुर्लभ मानव शरीर के साथ ये सबसे बडा अन्याय होगा । इसलिए समय से तत्वोपलब्धि हो जाए इसके लिए जीवन की सबसे बडी उपलब्धि सन्यास की उपलब्धि है ।

उक्त उद्गार ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती 1008 ने अपने 21वें संन्यास दिवस के उपलक्ष्य में गंगा पार आयोजित संन्यास समज्या समारोह के अवसर पर काशी के समस्त दण्डी संन्यासियों के समक्ष व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि जीवन की सबसे बडी उपलब्धि ज्ञानप्राप्ति है क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है ऋते ज्ञानान्नमुक्तिः ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है । विरक्त दीक्षा लेकर चार ब्रह्मचारी हुए शंकराचार्य परम्परा को समर्पित सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा के ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानन्द जी ने ‘परमाराध्य’ से दण्ड संन्यास की दीक्षा ली और अब से वे अपने नये नाम

श्रीमद्ज्योतिर्मयानन्दः सरस्वती के नाम से जाने जाएंगे। तीन अन्य ने भी विरक्त दीक्षा ली जिसमें से गुजरात के श्री पण्ड्या नैषध जी अब से केशवेश्वरानन्द ब्रह्मचारी के रूप में, बंगाल के वैराग्य जी अब साधु सर्वशरण दास के रूप में और तीसरे ब्रह्मचारी पुरुषोत्तमानन्द के रूप में जाने जाएंगे।काशी के प्रसिद्ध भजन गायक श्री कृष्णकुमार तिवारी जी ने सुमधुर भजन की प्रस्तुति समर्पित की ।संन्यास दीक्षा का कार्यक्रम आचार्य पं अवधराम पाण्डेय जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ। सहयोगी आचार्य के रूप में पं दीपेश दुबे, पं करुणाशंकर मिश्र, प्रवीण गर्ग उपस्थित रहे।इस अवसर पर प्रमुख रूप से इन्दुभवानन्द ब्रह्मचारी,परमात्मानन्द ब्रह्मचारी, अमित तिवारी, रमेश पाण्डेय, राजकुमार शर्मा, रामसजीवन शुक्ल, प्रमोद मांझी आदि जन उपस्थित रहे।

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