Dehradun

हार्ट ऑफ सिटी घंटाघर की एक बार फिर बंद हुई धड़कन

देहरादून, 30 सितम्बर। राजधानी देहरादून में स्थित षट्कोणीय दुर्लभ घंटाघर के शीर्ष पर लगी हैं 6 घड़ियां एक बार फिर बंद हो चुकी हैं. अनेक बार इसे ठीक कराया गया, लेकिन कुछ समय चलने के बाद यह फिर पहले जेसी हालत में आ जाती हैं। बार-बार घड़ियां खराब होने के कारण आस-पास निवास करने वाले लोग तो परेशान होते ही हैं, साथ ही साथ बाहर से आने वाले पर्यटकों को भी समय की जानकारी गलत मिलती हैं, जिससे शहर की छवि भी खराब हो रहीं हैं। वहीं यह भी कहा जाता हैं की बार-बार घड़ी खराब होने से नकारात्मक ऊर्जा आती है, जिससे मानसिक तनाव और आर्थिक तंगी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, रुकी हुई घड़ी प्रगति में बाधा डालती है और करियर व रिश्तों में रुकावट पैदा कर सकती है। यह जीवन में आने वाले खराब समय और रुकावट का संकेत माना जाता है। ज्योतिष में घड़ी को ग्रहों से जोड़ा जाता है और बंद घड़ी का मतलब समय के प्रवाह में रुकावट है, जो करियर, तरक्की और रिश्तों पर असर डाल सकती है। रुकी हुई घड़ी भाग्य को एक जगह पर रोक देती है, जिससे जीवन में आगे बढ़ने में बाधा आती है। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार चलती हुई घड़ी प्रगति का प्रतीक होती है और यह बुरे समय को टालने में मदद करती है, इसलिए घड़ी को चलते रहना बहुत ज़रूरी है। अभी हाल ही में उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर के नवीनीकृत स्वरूप का लोकार्पण किया था। उस समय सभी 6 घड़ियां बिलकुल सही चल रहीं थी, लेकिन चंद दिनों मे ही घड़ियां खराब हो जाना निश्चित ही चिंता का विषय बन रहा हैं।
देहरादून में घंटाघर को आनंद सिंह ने अपने पिता बलबीर सिंह की याद में बनवाया था। देहरादून के न्यायाधीश और रईस बलबीर सिंह की मृत्यु 22 सितंबर 1936 को हुई थी। आनंद स्वरूप गर्ग उस वक़्त सिटी बोर्ड के अध्यक्ष थे, जिन्होंने बलबीर क्लॉक टावर निर्माण का प्रस्ताव सिटी बोर्ड को दिया था। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन गवर्नर सरोजिनी नायडू ने 24 जुलाई 1948 को बलबीर क्लॉक टावर का शिलान्यास किया। बलबीर क्लॉक टावर के ठेकेदार नरेंद्र देव सिंघल, ईश्वर प्रसाद चौधरी, नत्थूलाल और वास्तुकार हरिराम मित्तल व रामलाल थे। बलबीर क्लॉक टावर बनने के बाद 23 अक्टूबर 1953 की शाम को तत्कालीन रेलमंत्री और देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया। इसके बाद इसे नगर पालिका को सौंप दिया गया। उस वक्त केशव चंद नगर पालिका के अध्यक्ष थे। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के बीचों बीच घंटाघर स्थित है, जिसे ‘हार्ट ऑफ सिटी’ कहा जाता है। इसके शीर्ष पर 6 घड़ियां होने से यह एशिया में अपनी तरह का दुर्लभ घंटाघर बताया जाता है। देश के अन्य घंटाघर की तरह इसका डिजाइन भी चौकोर था लेकिन बाद में इसे षट्कोणीय किया गया, जिसकी लागत में तब करीब 900 रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। घंटाघर के शीर्ष पर 6 घड़ियां लगाई गई हैं, जो उस दौर में स्विट्जरलैंड से भारी भरकम मशीनों के साथ मंगवाई गई थी। देश में बनाए गए इस अनोखे किस्म के करीब 80 फीट ऊंचे घंटाघर को बलबीर क्लॉक टॉवर नाम दिया गया। आनंद सिंह के परिवार ने 25 हजार रुपये दान देकर घंटाघर के निर्माण में योगदान दिया।

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