30 सितंबर को अष्टमी और 1 अक्तूबर को मनाई जाएगी नवमी

देहरादून 27 सितम्बर। भक्ति-ऊर्जा का पर्व शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर घरों में अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विधान है। अष्टमी पर महागौरी की पूजा होती है। कन्या पूजन अष्टमी या नवमी को किया जा सकता है। इस दिन कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनका पूजन करते हुए भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत और पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस बार अष्टमी तिथि की शुरुआत 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 31 मिनट पर होगी। तिथि का समापन 30 सितंबर को शाम 6 बजकर 6 मिनट पर होगा। उदया तिथि को मान्यता देते हुए, दुर्गा अष्टमी 30 सितंबर को मान्य होगी। इसके बाद नवमी तिथि का आरंभ होगा और यह 1 अक्तूबर को शाम में 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। ऐसे में नवमी 1 अक्तूबर 2025 को मनाई जाएगी। पंचांग के मुताबिक अष्टमी के दिन कन्या पूजन के लिए पहला शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजे से 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दूसरा मुहूर्त सुबह 10 बजकर 40 मिनट से 12 बजकर 10 मिनट तक है।
पंचांग के अनुसार नवमी तिथि पर कन्या पूजन सुबह 4 बजकर 53 मिनट से 5 बजकर 41 मिनट तक कर सकते हैं। इसके अलावा सुबह 8 बजकर 6 मिनट से 9 बजकर 50 मिनट के बीच आप कन्या भोज कर सकते हैं। हालांकि, इस तिथि पर शाम 7 बजकर 2 मिनट तक नवमी मान्य है, तो आप अन्य समय में भी कन्या पूजन कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि का आरंभ 29 सितंबर को शाम के समय 4 बजकर 32 मिनट पर होगा और 30 सितंबर को शाम में 6 बजकर 7 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। उदय तिथि के अनुसार, अष्टमी पूजन 29 सितंबर को किया जाएगा। इस अष्टमी को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है। 30 सितंबर का शाम में बजकर 7 मिनट से नवमी तिथि का आरंभ होगा और 1 अक्टूबर को शाम में 7 बजकर 2 मिनट तक नवमी तिथि रहेगी। ऐसे में नवमी तिथि का पूजन 1 अक्टूबर को किया जाएगा। जो लोग दुर्गा अष्टमी का पूजन करते हैं वह 30 सितंबर को कन्या पूजन करें और जो लोग नवमी में कन्या पूजन करते हैं वह 1 अक्टूबर को कन्या पूजन करें।
महाअष्टमी या दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। हालांकि, इस दिन ही कई लोग इस दिन हवन करके कन्या पूजन करते हैं। जिनके घर में अष्टमी पूजन किया जाता है वह सप्तमी के दिन उपवास रखकर अष्टमी में कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण करते हैं और जिन लोगों के घर में नवमी का पूजन होता है वह अष्टमी तिथि के दिन व्रत रखकर नवमी में ही कन्या पूजन कर लेते हैं।
अष्टमी तिथि के दिन महागौरी का पूजन किया जाता है। माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। तपस्या का दौरान मां केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। इसके बाद वह सिर्फ वायु पीकर की तप करने लगीं। उनके कठोर तप से उन्हें महान गौरव प्राप्त हुआ। इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें गंगा में स्नान करने के लिए कहां जिस समय माता गंगा में स्नान के लिए गई तब कठोर तपस्या के कारण उनका स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुई। माता इसी के साथ कौशिकी कहलाई। फिर स्नान के बाद उनका स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ तो माता का यह स्वरूप महागौरी कहलाया।